Press Statement 1/12/15 : Kinnaur in crisis; Sheer Negligence in hydro projects claiming lives. Who is accountable?

In the last two weeks a half a dozen lives have been lost in the Kinnaur region alone in three separate incidents that have one thing in common – accidents at hydropower project sites. The first event took place in Burang village on the 18th of November 2015 where a penstock pipe burst of the 100 MW Sorang Hydro-electric project led to the death of three people. On 29th November, two labourers died in blasting operations in the 450 MW Shongthong Karchham project, some others were seriously injured. And on the same day in the Bhabha Valley, a young teacher lost her life in a landslide that occurred in the area.

Even now more lives are at stake – Four days after the Sorang project disaster on 22nd November, a massive landslide occurred in Chagaon Village, located on the alignment of the Karchham Wangtoo project’s tunnel. While houses and property was damaged fortunately there were no fatalities. More of the area is likely to slide soon. Residents of Panvi Panchayat from Kinnaur carried out a demonstration last week at Shimla protesting the cracks in their houses due to the underground construction by the 9 MW Ralla-Taranda project.

It is time that the Himachal government wake up from its long slumber, because these events are not freak accidents, they are the result of sheer negligence in the construction of hydropower projects in the state. This negligence is evident at two levels – firstly the failure in ensuring compliance to environmental and safety norms by project authorities and the government. The second, is the negligence towards the very impacts of unregulated hydropower development. In both cases the project authorities have shown sheer callousness, continuously ignoring the issues raised by local people and environmentalists.

Now the geological, ecological and hydrological impacts of these projects, especially in fragile zones like Kinnaur are emerging clealry. The government has not just overlooked these impacts but justified each and every project making excuses and even trying to cover these impacts. For instance, the issue of slope destabilisation and landlsides in Kinnaur has been blamed on rainfall fluctuations, floods or other natural factors without conducting any independent studies. The project authorities have gone to the stupid extent of saying that these landslides are occurring naturally in the area. If that is the case, is it not all the more reason that the construction in these regions has to be controlled and regulated rather than allowing disastrous projects like Karchham Wangtoo to come up here?

As far as issues of safety regulations and monitoring goes, there are an ample number of incidences vis a vis hydropower projects that have occurred in the last couple of years apart from the ones that happened in the last two weeks in Kinnaur. The seepage in the Chamera III project that washed off Mokhar village’s habitations, the reservoir of the Aleo-II project in Kullu in its first testing, burst washing off the labour camps (with no fatalities); the seepages in the Karchham Wangtoo tunnel which were noticed in 2011 – are indicators of a disaster waiting to happen. Despite it being mandatory as per the Hydropower Policy 2006 that there will be a safety monitoring authority in the state that will look into the safety quality monitoring for hydropower projects, no such authority existed till recently. As late as August 2013, the Department of Power and MPP issued a notification about the creation of such an authority. Now the government should immediately make public all the work that has been done by this authority in the last two years. The people have a right to know, how often this committee convened its meetings, which are the projects it has monitored and what action has been taken in the cases of negligence and accidents. Has any punitive action been taken against power companies for negligence?

It needs to be put on record, in the context of the 100 Mw Sorang Hydro-Electric Project that the villagers had brought to the company’s notice that there were leakages in the penstock pipe at an earlier date on 8th May 2015. This indicates that there was some technical fault in the project despite which the testing was carried out. Further, it needs to be raised that on the night of the testing (when the accident occurred) no warning was issued by the project authorities while carrying out the testing of the penstock pipe.

Today, the Burang village is nothing less than a danger zone with rock and debris just hanging above heads of the residents. We wonder how the company even had the audacity to carry out construction in an area where there was habitation – even if temporary/ for part of the year. In event of heavy rains or tremors of any sort there will be additional damage and fatality which should be avoided at any cost. All families who are residing in Burang need to be protected so that they do not become victims of yet another accident which will be caused due to sheer negligence of the company as well as the administration, who is now responsible for the safety of the people.

The failure is of the central and state monitoring and regulatory authorities who have ignored the several incidents of landslides, massive erosion, drying up of water sources, sudden reappearance of water sources, deforestation leading to soil erosion, illegal muck dumping etc. Despite the impact of these on the horticulture, local vegetable cultivation, day to day life and safety of the people the government has not taken any action whatsoever on project proponents and have been blind to the issues raised by the affected people time and again.

किन्नौर संकट में है

हाइड्रो परियोजनाओं की लापरवाही लोगों की जिंदगी के लिए खतरा बन गई है
पिछले दो हफ़्तों के दौरान आधा दर्ज़न लोगों को अपनी जिंदगियां गंवानी पड़ी हैं. इन सभी में एक बात शामिल थी . यह सभी लोग हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट की साईट पर मरे हैं. पहली घटना 18  नवम्बर 2015 को घटित हुई, बुरंग गाँव में 100 मेगावाट के सोरंग हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट का पेनस्टॉक पाईप फट गया जिसमें तीन लोगों की मृत्यु हो गयी. इस घटना के चार ही दिन बाद ही चगाओं गाँव में भू-स्खलन हुआ जो करछम वांग्तु प्रोजेक्ट की सुरंग के पास ही बसा हुआ है. इस घटना में संपत्ति का नुकसान हुआ लेकिन संयोग से किसी की जान नहीं गयी. 29 नवम्बर को ही 450 मेगावाट शोंगथोंग करछम परियोजना में ब्लास्टिंग का काम करते हुए दो मजदूरों की मौत हो गयी और अन्य कई लोग गंभीर रूप से घायल हो गए. उसी दिन भाभा घाटी में एक शिक्षक की मृत्यु भू-स्खलन में हो गयी . कुछ दिन पहले पान्वी गाँव के लोगों ने शिमला में विरोध  प्रदर्शन किया था क्यों कि रल्ला तरंडा परियोजना के भूमिगत निर्माण कार्य की वजह से उनके घरों में दरारें पड़ने लगीं हैं.

अब समय आ गया है कि हिमाचल सरकार की खुमारी उतर जानी चाहिये. क्योंकि यह घटनाएँ महज़ सामान्य दुर्घटनाएं नहीं हैं. बल्कि यह राज्य में बनने वाले हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट में बरती जाने वाली लापरवाही का परिणाम हैं. लापरवाही दो स्तरों पर दिखाई देती है. पहली, पर्यावरणीय और सुरक्षा के नियमों के प्रति परियोजना प्रबंधन और सरकार के द्वारा बरती जा रही लापरवाही . दूसरी नियम विहीन हाइड्रोपावर का विकास. दोनों ही तरह के मामलों में परियोजना प्रबंधन की उदासीनता और स्थानीय जनता और पर्यावरण विशेषज्ञों द्वारा उठाये गए मुद्दों के प्रति लापरवाही साफ़ दिखाई दिखाई देती है.
हम बहुत लंबे समय से भूगर्भीय, पर्यावरणीय, जल प्रबंधन की दृष्टि से नाज़ुक इलाके किन्नौर में हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट के प्रभावों के बारे में बता रहे हैं. सरकार ने हमेशा ही इन प्रभावों की अनदेखी करी है बल्कि हर प्रोजेक्ट के निर्माण के लिए बहाने बाज़ी का सहारा लिया है और इनके दुष्परिणामों को जनता से छिपाने की कोशिशें करी हैं. उदहारण के लिए किन्नौर में ढालदार जगहों पर भूस्खलन के असल कारण जानने के लिए बिना कोई स्वतंत्र अध्यन करवाए ही बरसात के कम ज़्यादा होने को, या बाढ़ को, या किसी अन्य प्रकृतिक घटना को ज़िम्मेदार बता दिया जाता है. परियोजना प्रबंधन मूर्खतापूर्ण नतीजे निकालने में यहाँ तक कह देते हैं कि इन इलाकों में तो इस तरह के भू-स्खलन होना एक सामान्य प्रकृतिक घटना है. अगर ऐसा ही है तब तो इस तरह की करछम वांग्तु जैसी विनाशकारी परियोजनाओं में निर्माण को और भी नियमों के तहत और कड़ी देखरेख में बनाया जाना चाहिये था  . लेकिन इस तरह के किसी भी प्रश्न का जवाब किसी के पास नहीं है .

जहां तक सुरक्षा और देखरेख से जुड़े मुद्दों का सम्बन्ध है पिछले दो हफ़्तों में किन्नौर में हुई घटनाओं जैसी ही पिछले वर्षों में ऐसे अनेकों घटनाएँ हुई हैं. चमेरा III परियोजना में रिसाव की वजह से मोखर गाँव का आबादी का इलाका बह गया था .कुल्लू के अलियो–II परियोजना के जल भराव की जांच के समय मजदूरों की बस्ती बह गयी थी, हांलाकि इसमें किसी की मृत्यु नहीं हुई. इसी तरह का रिसाव करछम वांग्तु प्रोजेक्ट में सन 2011 में देखा गया था लेकिन यहाँ हम अभी भी दुर्घटना होने का इंतज़ार ही कर रहे हैं. हांलाकि जल विद्युत परियोजना नीति 2006 यह अनिवार्य कहा गया था कि सुरक्षा देखरेख अभिकरण का निर्माण करना अनिवार्य होगा, लेकिन अभी तक ऐसे किसी भी अभिकरण की स्थापना करी ही नहीं गयी है.

सन 2013 में Department of Power and MPP नें जलविद्युत परियोजनाओं के लिए सेफ्टी अथॉरिटी के गठन के लिए एक अधिसूचना जारी करी थी . सरकार को इस अभिकरण द्वारा पिछले दो सालों में किये गए कामों का खुलासा जनता के सामने करना चाहिये. जनता को जानने का ह्क़ है कि इस अभिकरण की बैठक कितने समय पर हुई हैं ? इस ने कौन सी परियोजनाओं की जांच करी है ? आज तक इसने किस दुर्घटना और लापरवाही के बारे में कोई कार्यवाही करी है. इसे जनता के प्रति जवाबदेह होना चाहिये जो कि इस तथाकथित  विकास का नुकसान झेल रही है.

इस अभिकरण को इस बात पर ध्यान देना चाहिये कि सोरंग 100 मेगावाट परियोजना के पेनस्टॉक पाईप में रिसाव के बारे में गाँव वालों नें कंपनी को 8th मई 2015 को ही सूचना दे दी थी . इसका मतलब है कि इस परियोजना में पहले से ही कोई तकनीकी खामी थी . लेकिन इसके बावजूद भराव क्षमता की जांच की कार्यवाही क्यों करी गयी . इसके अलावा इसे इस बात की भी जांच करनी चाहिये कि जिस रात पेनस्टॉक क्षमता की जांच करी जा रही थी और दुर्घटना हुई थी लोगों को कोई चेतावनी या सूचना क्यों नहीं दी गयी ?
आज बुरंग गाँव लोगों के सिरों पर लटकते हुए मलबे के ढेर में बदल चुका है . हमें आश्चर्य है कि कंपनी ने रिहाइशी इलाके में निर्माण की हिम्मत ही कैसे करी ? चाहे वह साल के कुछ हिस्से के लिए तात्कालिक तौर पर ही करी गयी हो. आज कभी भी तेज बारिश या भूकंप के धक्के से बहुत से लोगों की जान जा सकती है. जिसे किसी भी कीमत पर बचाया जाना चाहिये. वह सभी परिवार जो कि बुरंग में रह रहे हैं उनकी जिंदगी की रक्षा करी जानी चाहिये ताकि कंपनी की लापरवाही की वजह से होने वाली किसी और दुर्घटना में उनकी जान ना जाए,  और इन यह लोगों की जिंदगी की सुरक्षा प्रशासन की भी पूरी जिम्मेदारी है .
आज यह बात बिलकुल साफ़ हो गयी है कि  भू स्खलन, बड़े पैमाने पर मिट्टी कटाव, गैरकानूनी मलबा डम्पिंग , जल स्रोतों का सूखना, जल भराव स्रोतों का कम हो जाना, जंगल कटान के कारण मिट्टी कटाव को रोकने में केन्द्रीय और राज्य के नियामक और देखरेख संस्थाएं पूरी तरह विफल सिद्ध हुई हैं. इसके स्थानीय वनस्पति, फल और सब्ज़ी उत्पादन और लोगों की रोज़मर्रा की जिंदगी पर पड़ने वाले खतरे के बारे में स्थानीय लोगों द्वारा बार बार  आवाज़ उठाई जाती है लेकिन सरकार हमेशा ऐसे मामलों में अंधी बनी रहती है

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