सैंविधानिक अधिकारों की रक्षा के लिए बुलाए गए राष्ट्रव्यापी अभियान में शामिल हुए हिमाचल के 30 से अधिक संगठन

पूरे राज्य में मानव अधिकार एवं जन हित के विभिन्न मुद्दों पर कार्य कर रहे 30 से अधिक नागरिक समाज समूहों ने हमारे संविधानिक अधिकारों व मूल्यों की रक्षा के लिए चलाए जा रहे राष्ट्रव्यापी अभियान में भाग लिया है। इस आह्वान पर अमल करते हुए देश भर में 500 से अधिक पूरे देश में 5 सितंबर 2020 को ‘if we do not rise…(हम अगर उठे नहीं तो) नारा बुलंद करेंगे। यह दिन पत्रकार और चिंतक गौरी लंकेश की हत्या की तीसरी बरसी भी है। इस कार्यक्रम को लेकर हिमाचल के संगठनों ने जूम पर मंगलवार को एक प्रैस सम्मेलन आयोजित किया जिसमें बोलते हुए कार्यक्रम की राष्ट्रीय संयोजक शबन हाशमी ने कहा है कि फासीवाद तभी पनपता है जब चुप्पी होती है, लेकिन हमारी जीत हुई है आवाज उठी है, डरी सहमी आवाजे उठ रही हैं। सामाजिक बदलाव की लड़ाईयों में पीढ़ियां लग जाती हैं। सच की कभी हार नहीं होती, नफरत फैलाने वाले प्यार मोहब्बत फैलाने वालों से कभी नहीं जीत सकते।

इन संगठनों का मानना है कि पिछले कुछ वर्षों से, भारतीय लोकतंत्र और संविधान एक अभूतपूर्व संकट का सामना कर रहा है। इस दौरान न केवल – न्यापालिका से लेकर संसद तक, प्रशासनिक संस्थानों से लेकर मिडिया तक, लोकतंत्र के बहुत सारे स्तंभ गिरते हुए दिखे, बल्कि इस से भी बढ़कर कमजोर सामाजिक तबकों को भी हासिये पर धकेल दिया गया। पिछले पांच महीनों में जब से देश वैश्विक महामारी से ग्रस्त हुआ है और राष्ट्र व्यापी तालाबंदी हुई है, इस ने हमारे राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक व्यवस्था की घोर खामियों और गंभीर अभाव को नंगा कर दिया है। इस ने लाखों की संख्या में जनता, महिला, दलित, अल्पसंख्यकों, आदिवासियों, किसानों, ट्रांसजेंडर्स लोगों को हाशिए पर धकेल दिया जो कि अपने जीवन और स्वाभिमान के लिए घुमादार संघर्षों में उलझ गए हैं।

आभा भैया ने बात रखते हुए सरकार को कहा देश एक नई तरह की गुलामी की तरफ बढ़ रहा है। हर कुछ सरकार निजी कंपनियों के हाथों में शौंप रही है। संविधान ने बराबरी का अधिकार दिया, लेकिन किस को बराबरी मिल रही है, दलित, आदिवासी, अल्पसंख्यक, एलबीजीटी सब को भेदभाव का सामना करना पड़ रहा है। 5 सितंबर को गौरी लंकेश की याद में जवाबदेही मांगने का अभियार हैं, संविधान बचाने और बराबरी के अधिकार के लिए लड़ने का अभियान है। 5 सितंबर को 2000 हजार से ज्यादा विडियो और फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम आदि तमाम सोशल मिडिया प्लेटफार्मों पर यह अवाज उठाई जाएगी।

आदिवासी मुद्दों पर स्पिति के टाकपा तेंजिन ने हिमाचल के आदिवासियों के मुद्दों पर बात रखते हुए कहा कि सरकारी स्वास्थ्य सुविधाओं की कमियों के चलते स्पिति वासियों ने खुद 15 व 17 मार्च से पारंपरिक रूप से स्थानीय स्तर पर लाकडाउन लगा दिया था। सरकार ने वहां के नियम कानूनों को नजरंदाज किया जो कि हमें पेसा कानून के तहत मिले हुए हैं।

हिमाचल सरकार चंद्रभागा नदी पर 27 हाईड्रो पावर प्रोजेक्ट बनाकर पूरे स्पिती और किन्नौर को महाविनाश की तरफ धकेल रही है। किन्नौर हाईड्रो पावर प्रोजेक्ट की वजह से तबाह हो चुका है, हल्की बारीश से भी भारी भुस्खलन होता है और घरों में दरारों आ चुकी हैं। लगातार चश्मे. झरने खत्म होते जा रहे हैं। यहां पर बिजली की लागत 5-6 रुपये युनिट है और सरकार इससे सस्ता बेच रही है फिर भी अगर वह प्रोजेक्ट लगा रही है तो वह केवल ठेकेदारों और सीमेंट फैक्ट्रियों को मुनाफा कमाने के लिए लगा रही है। वन अधिकार कानूनों को यह कहकर लागू नहीं किया जा रहा कि इस से जंगल व प्राकृतिक संसाधन खत्म हो जाएंगे, लेकिन बड़ी कंपनियों को अंधाधूंद जंगल काटने की मजूंरियां दी जा रही है।


हिमाधरा पर्यावरण समूह की मानशी अशर ने इस बात को रेखांकित किया कि कोविड महामारी ने यह साबित कर दिया है कि पर्यावरण प्रदूषण, पर्यावरण संकट का कारण प्राकृतिक खुद नहीं बल्कि दुनिया के विकास का पूंजीवादी माडल और भूमंडलीकरण जैसी नीतियां हैं। अगर गैर जरूरी आर्थिक गतिविधियों पर रोक लगाई जाए तो इस पर्यावरण को बचाया जा सकता है लेकिन सरकार ने लाकडाउन के दौरान भी इसके उल्ट किया, पर्यावरण के नियमों को आसान बनाने के नाम पर ऐसी योजना बनाई जा रही हैं जिस से पूंजीपतियों को फायदा हो रहा है, सरकार बड़ी परियोजनाओं, एयरपोर्ट आदि को मंजूरी दे रही हो जो हिमाचल के हित में नहीं है।

समानता के अधिकार के लिए कार्य करने वाले कार्यकर्ता सुखेदव विश्वप्रेमी ने हिमाचल के जातिय मुद्दे को जोर शोर से प्रैस कान्फ्रेंस में उठाया और कहा कि सरकार को इस अभियान को सकारात्मक नजरिए से देखना होगा। जातिवादी सामंती पितृसत्ता मानसकिता, मनुवादी संस्कृति, मजबूत हो रही है। जहां हम रह रहे हैं, तथाकथित देव भूमि, मानसिक दसता है, दलितों को संसाधनों से वंचित किया गया, जाति के आधार पर अत्याचार होते हैं। रास्ते, पीने का पानी, मीड डे मिल, मंदिर में समस्या, मूलभूत सुविधाओं पर जाति के आधार पर रोक नहीं होनी चाहिए। मानवीय समाज के लिए मूहिम चलनी चाहिए।

संसाधनों पर हिस्सेदारी की बात करने से अत्याचार बढ़ते हैं। मोब लिंचिंग, सिरमौर में, कोई न्याय नहीं मिला। छुआछूत अत्याचार मुक्त किया जाए, अभियान चलाया जाए। सरकार से बात की जा रही है। 2 लाख 27 भूमिहीन लोग हैं, भूमि सुधार के प्रयास अधूरे हैं, उनका निपटारा किया जाना चाहिए। 5 अक्तुबर 2006 नोटिफिकेशन के साथ किया जाए।  सब प्लान का पैसा दूसरे कार्यों में लगता है, उसका पैसा वहीं लगाय जाना चाहिए।

निर्मला चंदेल ने एकल नारी की समस्याओं को बहुत ही संवेदनशीलता के साथ उठाया और बताया कि हमारे साथ 16071 महिलाएं जुड़ी हैं, महिलाओं ने छोटे-छोटे ढाबे खोले, पार्लर खोले, मजदूरी  आदि की, लाकडाउन ने  सब खत्म कर दिया। कहां से कार्य करे, पैसा नहीं मिला, पैसे मांगने वालों से मुश्किल होती है, 1000 पैंशन में क्या होगा, एक महिला को अंगूठी गिरवी रखनी पड़ी, घरेलू हिंसा के मामलों में बढ़ोतरी हुई। दहेज के पीछे पीटा गया, सरकारी योजना लाभ पुरुषों मिल रहा है, एक महिलाओं के नाम जमीन होनी चाहिए। महिलाओं को दवाई इलाज के लिए जाना जाना मुश्किल हुआ, बसे नहीं चली, खुद की गाड़ी नहीं, न उतने पैसे इस लिए हिमकेयर जैसे कार्ड भी बिमारी में काम नहीं आए।

इसके अलावा एडवा की संतोष कपूर ने, अल्पसंख्यक समूहों के लिए कार्य करने वाली रिचा मनोचा व शिक्षा के अधिकार के लिए कार्यरत अत्रेयी सेन, मनरेगा मजदूरों की लड़ाई लड़ रही चंद्रकांता, घमुंतू पशुपालकों के संगठन की तरफ से लाल हुसैन ने भी विस्तार से अपनी बात रखी। कार्यक्रम का संचालन हिमधरा पर्यावरण समूह से जुड़ी हिमशी ने किया। कार्यक्रम में घमंतु पशुपालों के मुद्दों पर लाल हुसैन ने अपनी बात रखी और उमा महाजन लगातार कार्यक्रम में जुड़ी रही।

Demand Charter

Memorandum submitted to Governor on Tribal Issue

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The Tribune

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