प्रेस नोट 5 जून 2019: ‘संकट में पहाड़’: विश्व पर्यावरण दिवस पर मीडिया गोष्ठी का आयोजन

5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस के उपलक्ष में शिमला प्रेस क्लब और हिमधरा प्रयावार्ण समूह ने मिल कर राजधानी में आधे दिन की मीडिया वर्कशॉप का आयोजन किया. वर्कशॉप में हिमालयी क्षेत्रों में पर्यावरणीय संकट पर गहराई में चर्चा हुयी जिसमें हिमधरा समूह की मांशी आशर और सुमित महर के साथ वरिष्ठ पत्रकार पी सी लोह्मी ने मुद्दे पर अपने विचार रखे. आम तौर पर लोग सोचते हैं की पर्यावरण की समस्या केवल प्रदूषण है और पहाड़ों में पर्यावरण सम्बन्धी समस्याएं शहरों के मुकाबले कम हैं. परन्तु असलियत इसके ठीक विप्र्रीत है. वायु प्रदूषण तो केवल एक पर्यावरणीय मुद्दा है. जब जल, जंगल, जमीन, जानवर और जन – इनके बीच का रिश्ता और संतुलन बिगड़ जाता है तो हम इसको पर्यावरण संकट मान सकते हैं – और इससे न केवल प्रकृति बल्कि मानव जीवन, समाज, अर्थव्यवस्था और यहाँ तक की हमारे मनोविज्ञान पर भी असर पड़ता है. साथ ही जलवायु परिवर्तन जैसी भयंकर समस्या के संकेत हिमालयी क्षेत्र जैसे संवेदनशील स्थानों में और तेज़ी से प्रकट हो रहे हैं जिनको हम अब अनदेखा नहीं कर सकते.

“पिछले कुछ वर्षों में काफी अध्ययनों से यह स्पष्ट हुआ है कि हिमालय, जो दुनिया का सबसे बड़ा जल संग्रह है जिसपर 8 देशों के सौ करोड़ से अधिक लोग निर्भर हैं, के हिमखंड तेज़ी से पिघल रहें हैं, नदियाँ और भूजल के स्रोत सूख रहें हैं, जंगल खत्तम हो रहें हैं और यहाँ बाढ़ और भूस्खलन जैसी दुर्घटनाएं आम हो गयी हैं. हलाकि जलवायु परिवर्तन का स्वरूप और इसके कारण वैश्विक हैं पर इसका प्रभाव स्थानीय है”, हिमधरा समूह की मान्शी आशर ने बताया. “साथ ही स्थानीय स्तर पर हो रही विकास की गतिविधियों के पर्यावरणीय प्रभावों को भी हम नज़रंदाज़ नहीं कर सकते. अंधाधुन्द निर्माण कार्य चाहे जलविद्युत परियोजनाएं हों या फोरलेन सड़क या खदान और औध्योगिकर्ण या अनियंत्रित पर्यटन – इन सब गतिविधियों के लिए संसाधनों का अत्यधिक दोहन होने से पर्यावरण पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहें हैं”. इन संसाधनों पर निर्भर किसान और स्थानीय समुदाय भी इन बदलावों से प्रभावित हो रहें हैं. हिमधरा समूह के सुमित महार ने किन्नौर के लिप्पा गाँव का उदाहरण देते हुए बताया, “यहाँ का जन जातीय समाज अपने अस्तित्व और आजीविका को बचाने के लिए पिछले दस वर्षों से काशांग बिजली परियोजना  के खिलाफ संघर्ष कर रहा है. परन्तु सरकार स्थानीय लोगों के वन भूमि पर कानूनी अधिकार होने के बावजूद इस परियोजना को बनाने पर तुली हुयी है”.

हिमधरा समूह के सदस्यों ने बताया कि पूरे विश्व में यह चर्चा हो रही है की यदि वनों का संरक्षण करना है तो स्थानीय समुदायों को इन संसाधनों पर अधिकार देने होंगे. पर्यावरण संरक्षण के लिए लोगों की भागीदारी अनिवार्य है. साथ ही कोई भी विकास की परियोजना और नीति बनाने में भी जनता और स्वयं सेवी समाज का पक्ष होना चाहिए. दूसरी तरफ केवल आर्थिक फायदा न देखते हुए सरकारों को बहु आयामी सोच के साथ आजीविका के साधन विकसित करने होंगे ताकि प्राकृतिक संतुलन बना रहे. पर्यावरण संरक्षण के कानूनों को कड़ा करने के बजाए सरकारें इन पर ढीली पड रही हैं – और प्रशासन केवल न्यायालय पर पूरी तरह निर्भर है – यह भी गलत है. शहरी कूड़े के प्रबंधन को ले कर हिमाचल में यह देखा गया है कि प्रशासन की भूमिका उदासीनतापुर्वक रही है. इसके चलते पूरे राज्य में आज तक कचरे के प्रबंधन पर ठोस नीति नहीं बन पायी है.

पी सी लोह्मी ने इस बात पर ध्यान आकर्षण किया कि किस तरह से हमारी पुरानी उपभोग की पद्धत्तियाँ ख़तम की जा रही हैं – खान पान से ले कर, हमारे पहनावे और रहन सहन के तरीके बाजारीकरण ने बदल दिए हैं और हमारी विकास की परिभाषा का एक ही आधार है जो आर्थिक है. उन्होंने मीडिया की भूमिका पर जोर दिया और कहा कि समाज में बदलाव सरकारें नहीं ला सकती बल्कि मीडिया और आज समाज के लोग मिल कर ला सकते हैं. लोह्मी जी ने कहा की आज का विकास हमारे राजनेताओं का अजेंडा है, आम लोगों का नहीं और आम लोगों को अपने असली मुद्दों को राजनैतिक मुद्दे बनाने का काम करना होगा और इसमें मीडिया आम जनता की बात उठाने में सक्रीय बन भूमिका निभा सकता है.

Media coverage

The Statesman
Jansatta
Divya Himachal
Punjab Kesari

Post Author: Admin