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PRESS NOTE: 15th January 2022 | Yet another Tunnel testing hazard at a hydropower site in Himachal; Seepages from 180 MW Bajoli-Holi Power Project at Jharauta village in tribal area Bharmour of Chamba in late December triggers landslides, damage to homes; Villagers had warned of poor geology during project planning: Fact-finding report
The Himdhara Environment Research and Action collective has released a fact-finding report of recent landslides and damage to homes that occurred in the affected area of the 180 MW Bajoli Holi Project in Chamba. Himdhara, an environment action group that has been documenting the environmental impacts of mega development projects in Himachal, visited Jharauta village of Holi Panchayat in Bharmaur tehsil of Chamba on the 3rd and 4th of January 2021.
In the last week of December 2021, several news items appeared in the local electronic and print media reporting sudden seepages from the tunnel of the HEP. Reports also suggested that the same had started around 17th to 19th December. Close to two weeks after, the seepages and resultant landslides continued even as no substantial action was taken by the project authorities or the local administration. “The objective of our visit was to collect local testimonies from Jharauta residents located in the alignment of the project tunnel site, regarding cracks on residential houses and private/forest lands”, according to the report.
“Our team reached the site on 3rd January in the afternoon. We observed that a worker had started emptying out his shed that had begun to come under the grip of the landslide near the Holi Chamba Road at the root of the Jharauta village. Right next to it was an under-construction house. Water was seeping from above and the land could be seen sliding down, stones rolling down. On 4th another family vacated their house as the landslide kept growing”, said Vivek Negi, a member of the fact-finding team.
“As per local testimonies, people first noticed the seepage on the left side of the village on 19th December. After that more seepages appeared, landslides became active, cracks started showing up. Obviously, people were distressed but up until the day we reached the site, the seepages were still continuing, people had no idea if the testing had been stopped”, he added. On the same day, a committee headed by the Nayab Tehsildar was set up by the administration to assess the damages. Angry residents of Jharauta demanded that the project work be immediately shut down and a team of safety experts sent to the area.
Assessing what has been lost is one thing, but examining the risks in the near future to the rest of the area is extremely urgent and the Directorate Of Energy must send a team of safety experts need to the site right away, the report recommends. “Right where the seepage started first is the same area wherein 2014 women of the Holi Panchayat organized a month-long sit in”, added Manshi Asher, of Himdhara Collective. “They were protesting the unscientific and fallacious shift in the tunnel site from the barren right bank to the forested and heavily populated left bank of Ravi. People had warned the administration and authorities exactly of this, that the area had very fragile geology and there would be a tremendous threat to life and property but it all fell on deaf ears”, said Asher.
This is not a first of its kind incident, these hazards are occurring at every stage of the project – during the construction, due to intensive blasting, during the testing and then long after commissioning. “Once the slopes have been destabilized and geology of the area disturbed, there are bound to be impacted, but all this should have been looked into during the planning and impact assessment phase. However, at that time the agencies are only concerned with getting clearances”.
In the state, 56% of constructed HPPs are under serious threat of landslide hazards, as a 2015 study of State Disaster Management Authority (SDMA) warns. Hence, any negligence at the level of planning and impact assessment is bound to have disastrous consequences. The Environment Impact Assessment reports prepared for hydropower projects have failed to do a genuine assessment of the impacts often ignoring landslide proneness, seismicity issues or disaster proneness of the areas.
In the case of the Bajoli Holi project too, the affected area is in Bharmour region which falls under the high to very high landslide susceptibility zone of GSI mapping. (TARU, 2015).
On one hand the community has to cope with a gradual loss of livelihoods and resources, on the other the trauma due to such hazards and risks compromise their situation further. “Apart from ensuring accountability of project authorities and initiating safety measures, the administration must ensure that people of Jharauta are immediately given all benefits of Rehabilitation and Resettlement package” added Upkar Singh of Himdhara Collective.
Copy of Fact-finding Report
Submission to Chief Minister of Himachal Pradesh
Annexure 1
Annexure 2
News Coverage
Hindustan Times
The Tribune
UNI
News18
Times Of India
प्रेस नोट: 15 जनवरी 2022 | हिमाचल में फिर एक और जल विद्युत परियोजना के टनल परीक्षण से शुरू हुआ खतरा, चंबा जिला के जनजातीय इलाके भरमौर में बन रही 180 मेगावाट बजोली- होली जल विद्युत परियोजना की सुरंग में रिसाव के चलते भूस्खलन और घरों को खतरा; परियोजना की योजना के वक्त ही ग्रामीणों ने इलाके की नाजुक पारिस्थिकी को लेकर चेताया था सरकार व कंपनी को: फ़ैक्ट फ़ाइंडिंग रिपोर्ट
चंबा जिला में बन रही 180 मेगावाट बजोली-होली जल विद्युत परियोजना प्रभावित इलाके में हाल ही में हुये भूस्खलन और घरों के नुकसान के तथ्यों पर हिमधरा पर्यावरण समूह ने एक फ़ैक्ट फ़ाइंडिंग रिपोर्ट जारी की। हिमधरा, एक पर्यावरण समूह हिमाचल प्रदेश में बड़ी विकास परियोजनाओं के पर्यावरणीय प्रभावों का दस्तावेजीकरण पिछले एक दशक से कर रहा है, के सदस्यों ने 3-4 जनवरी 2022 को चंबा जिला के भरमौर तहसील की होली पंचायत के जढोता गाँव का दौरा किया।
दिसंबर माह के अंतिम सप्ताह में, जल विद्युत परियोजना की सुरंग से हुये रिसाव की खबरें स्थानीय इलेक्ट्रोनिक व प्रिंट मीडिया में छायी रहीं। खबरों के मुताबिक जल रिसाव की घटनायें 17 से 19 दिसंबर के आस-पास शुरू हुयीं. इसके लगभग दो हफ्ते बाद रिसाव व भूस्खलन जारी रहा और स्स्थाथानीय जनता का कहना था कि प्रशासन व कंपनी प्रबंधन ने कोई ठोस कदम नहीं उठाए। रिपोर्ट के अनुसार, “हमारे दौरे का उद्देश्य परियोजना सुरंग स्थल के पास में स्थित जढोता गांववासियों से आवासीय घरों और निजी / वन भूमि पर दरार के संबंध में साक्ष्य व राय जुटाना था”।
फ़ैक्ट फ़ाइंडिंग टीम के सदस्य विवेक नेगी ने बताया की “हमारी टीम प्रभावित स्थल में 3 जनवरी की दोपहर में पहुँच गयी थी। हमने देखा कि जढोता गांव की तलहटी में होली-चंबा सड़क के पास भूस्खलन की चपेट में आए अपने शेड को एक श्रमिक खाली कर रहा था। इसी के पास एक घर निर्माणाधीन था। ऊपर से पानी रिस रहा था और जमीन नीचे की ओर खिसकते, पत्थरों को लुढ़कते हुए देखा जा सकता था। भूस्खलन बढ़ने के कारण 4 जनवरी को एक और परिवार अपना घर खाली कर रहा था”।
उन्होने जोड़ते हुये कहा की “स्थानीय बयानों के अनुसार लोगों ने सबसे पहले 19 दिसंबर को गाँव के बायीं तरफ रिसाव देखा था। उसके बाद और अधिक रिसाव दिखाई दिया, भूस्खलन सक्रिय हो गये, दरारें दिखाई देने लगीं। जाहिर है, लोग परेशान थे लेकिन जब तक हम प्रभावित जगह पर पहुंचे, तब तक रिसाव जारी था, लोगों को पता नहीं था कि परीक्षण बंद कर दिया गया है या नहीं”। उसी दिन नुकसान का आकलन करने के लिए प्रशासन द्वारा नायब तहसीलदार की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया गया था। आक्रोशित जढोता निवासियों ने मांग की कि परियोजना का काम तुरंत बंद कर दिया जाए और सुरक्षा विशेषज्ञों की एक टीम को इलाके में भेजा जाए।
रिपोर्ट की सिफ़ारिश के अनुसार, जो नुकसान हो गया है उसका आकलन करना एक बात है, लेकिन निकट भविष्य में बाकी के क्षेत्र में खतरों की जांच करना बेहद जरूरी है और ऊर्जा निदेशालय को सुरक्षा विशेषज्ञों की एक टीम को तुरंत प्रभावित स्थल पर भेजना चाहिए, रिपोर्ट की सिफारिश है। हिमधरा पर्यावरण समूह की मांशी आशर ने बताया की “सबसे पहले जहां रिसाव शुरू हुआ, उसी इलाके पर 2014 में होली पंचायत की महिलाओं ने एक महीने तक धरने का आयोजन किया था”। “वे परियोजना सुरंग का रावी नदी के दाहिने तरफ से बायीं तरफ बदलाव का विरोध कर रहे थे। गौरतलब है की दायीं तरफ बंजर जमीन है जबकि बायीं तरफ आबादी व जंगल वाली जगह है। लोगों ने प्रशासन व अधिकारियों को इसके बारे चेतावनी दी थी की इस इलाके की पारिस्थिकी बहुत नाजुक है और सुरंग निर्माण से जान-माल का नुकसान होगा लेकिन इस पर प्रशासन ने कोई ध्यान नहीं दिया” मांशी ने जोड़ा।
यह अपनी तरह की कोई पहली घटना नहीं है, ये खतरे परियोजना के हर चरण में रहते हैं – भारी विस्फोट के कारण, निर्माण के दौरान, परीक्षण के दौरान और फिर चालू होने के लंबे समय बाद भी। “एक बार जब ढलानों को अस्थिर कर दिया जाता है और क्षेत्र का पारिस्थिकी व भू-संरचना गड़बड़ा जाता है, तो प्रभाव होना तय है, लेकिन यह सब योजना और प्रभाव आंकलन चरण के दौरान देखा जाना चाहिए था। हालांकि, उस समय एजेंसियों का ध्यान केवल मंजूरी लेने में होता है”।
राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एसडीएमए) के 2015 के एक अध्ययन में चेतावनी दी गई है कि राज्य में, 56 फीसदी जलविद्युत परियोजनाएं भूस्खलन के गंभीर खतरे में हैं। इसलिए, योजना और प्रभाव आंकलन के समय पर किसी भी तरह की लापरवाही के विनाशकारी परिणाम होना तय है। जलविद्युत परियोजनाओं के लिए तैयार की गई पर्यावरण प्रभाव आकलन रिपोर्ट में अक्सर भूस्खलन होने की संभावनाओं, भूकंपीय मुद्दों या इलाके की आपदा संभावना के प्रभावों की अनदेखी करते हुए वास्तविक मूल्यांकन करने में विफल रही है।
बजोली-होली जल विद्युत परियोजना के मामले में भी, प्रभावित क्षेत्र भरमौर क्षेत्र जीएसआई मैपिंग के अनुसार बहुत ही ज्यादा भूस्खलन संवेदनशीलता क्षेत्र के अंतर्गत आता है। एक ओर समुदाय को आजीविका और संसाधनों के लगातार नुकसान का सामना करना पड़ता है, तो दूसरी तरफ ऐसे खतरों और जोखिमों के कारण होने वाला आघात उनकी स्थिति को और भी खराब कर देता है। हिमधरा पर्यावरण समूह के उपकार सिंह का कहना है की “परियोजना अधिकारियों की जवाबदेही सुनिश्चित करने और सुरक्षा उपाय शुरू करने के अलावा, प्रशासन को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि जढोता के लोगों को पुनर्वास और पुनर्स्थापन पैकेज के सभी फायदे तुरंत दिए जाएं”।
3 thoughts on “PRESS NOTE: 15th January 2022 | Yet another Tunnel testing hazard at a hydropower site in Himachal; Seepages from 180 MW Bajoli-Holi Power Project at Jharauta village in tribal area Bharmour of Chamba in late December triggers landslides, damage to homes; Villagers had warned of poor geology during project planning: Fact-finding report”
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